यह तब की बात है जब स्कूल में मास्टर जी द्वारा पप्पू को क्लास का मॉनिटर बना दिया गया।
पप्पू में बचपन से ही नेतृत्व और आत्मनिर्भरता के गुण उसके दादाजी को दिखने लगे थे।
जब कक्षा में मॉनिटर बनने की बात पप्पू के दादाजी को पता लगी, तो उसी दिन से दादाजी ने घोषणा कर दी, आज से मेरे नाती का नाम कोई भी पप्पू नहीं कहेगा; बल्कि पप्पू जी के आदर सूचक नाम से ही उसे पुकारा जाएगा।
दादाजी ने भविष्यवाणी कर दी; यह लड़का एक दिन जरूर, अपने इलाके का विधायक बनेगा.
पप्पू जी का जन्म हुआ था उस दिन, जब पद्मभूषण जूलियो रिबैरो के नेतृत्व में; 1000 कमांडों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर धावा बोलकर, मात्र 8 घंटे के अंदर 200 आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया था। इस कार्यवाही को आज हम पहले ऑपरेशन ब्लैक थंडर के नाम से जानते हैं।
इधर पप्पूजी अपनी पढाई पूरी किए ही थे, की सामने दुनिया भर में; भयानक मंदी का तांडव दिखने लगा।
भारत में बावजूद एक अर्थशास्त्री के प्रधानमंत्री होने के, अगले चार पांच साल में युवावर्ग में नैराश्य घुसता ही चला गया। पप्पू जी भी इससे अछूते कैसे रहते?
फिर भी पप्पू जी अपने यार दोस्तों की भांति, जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने की जगह; कोचिंग खोलकर कम्पटीशन की तैयारी कराने लगे लड़कों को।
लम्बे अरसे तक यह करके, सैकड़ों हफ्तों के बाद भी, देखते क्या हैं? अधिकांश लड़के, अभी भी बेरोजगारी से लड़ ही रहे हैं।
दादा जी का, पप्पू जी के संदर्भ में आत्मविश्वास; अभी भी हिलोरे ले रहा था।
एक दिन पप्पू जी ने कोरा पर एक प्रश्न का जवाब पढ़कर ई-पापुस्त® नामक संस्था की वेबसाइट से; अपने इलाके की विस्तृत व्यावसायिक सम्भावना के लिये, भण्डारक/ वितरक/ Eco Evangelist/ इको-प्रसारक की भूमिका हैतु ऑनलाइन पंजियन कर दिया।
करोना के वैश्विक ढलाव (साप्ताहिक) आरम्भ होते ही; पप्पू जी के पास ई-पापुस्त® के संस्थापक की ओर से मैसेज आ गया, एक लिंक का।
जिसके माध्यम से पता चला, कि कैसे परेश को ढूंढकर अपना डीलर बनाना है? और उसके लिये किस घौड़े पर सवार होना है?
पप्पू जी ने आनन-फानन में, जिले भर के गांव व कस्बों में; अपने सम्पर्कों के पास, व्हाट्सएप कर डाला। पारकैम्प के बारे में।
साथ में जिले के सभी प्रसिद्ध अखबारों & चैनलों के वर्गीकृत विभाग में, वर्गीकृत विज्ञापन दे दिया। एक-एक करके; छपने & दिखाने को।
इलाके की बैरोजगारी के आलम में, पप्पूजी के पास फोन आने का; तांता लग गया।
पप्पूजी ने सभी अभ्यर्थीयों को, अधिक जानकारी के लिये; यह (https://www.parcamp.in/p1) लिंक मैसेज कर दी।
हफ्ते भर के अन्दर सभी अभ्यर्थीयों को फोन कर-कर; "इकोदूत क्या, क्यों और कैसे?" उनकी भाषा में समझा के, न सिर्फ उनका मार्गदर्शन किया, बल्कि उन के आवेदन की प्रक्रिया; भी पूर्ण करवायी।
देखते ही देखते अपने आजू-बाजू के 25-35 पिन कोड क्षेत्रों में; एक-एक* शिविर समन्वयक, का पंजीयन करवा डाला।
*सर्वाधिक जरूरतमंद चुन-चुन कर।
परेश भी उनमें से एक शिविर समन्वयक था। जिसकी दो महिने बाद शादी होने वाली थी; पर बेरोजगारी के चलते गहन निराशा में डूबा हुआ था, जब पप्पू जी से उसका वार्तालाप हुआ।
बातचीत पूरी होते ही; पप्पू जी के सामने ही https://www.parcamp.in/p1 से पंजियन-पुस्तिकाओं का ऑनलाइन आदेश कर दिया।
उसके पास पंजियन-पुस्तिकाओं की वीपीपी आते ही पंजियन-पुस्तिकाओं का गट्ठा लेकर वह निकल पड़ा पड़ोस के गांव की तरफ।
परेश ने वहां जाकर; दिन भर चौपाल पर बिताया। अंधेरा होते-होते 20 बेरोजगार लड़कों के पंजियन करवा डाले। रात उसी गांव में बिताकर, वहां से निकलने वाली एक मोटर साइकिल के पीछे बैठ कर; चल दिया बाजू के दूसरे गांव में।
परेश ने अपने पिट्ठू थैले में से 400 ग्राम वजन कम कर लिया; परन्तु जेब में अपनी पहली कमाई के रुपये जमा कर लिए उस गांव से।
परेश जैसे 20 और लड़के, देखते-देखते निकल पड़े; अपनी-अपनी पीठ पर, पंजियन-पुस्तिकाओं का गट्ठा लेकर। और पारकैम्प के लिए, जिले भर के 10 000 बेरोजगारों के; नामांकन कर लाये।
अब बारी थी; पारकैम्प के शिविर आयोजनों और फिर उसकी विशेष अल्गोरिदम की।
पप्पू जी की असली कमाई की शुरुआत हुई, परेश द्वारा आदेशित; अनिवार्य साहित्य उसे; यथासमय नगद में सप्लाय करने से।
पहिले साल का अन्त होते-होते पप्पू जी ने; एक लाख किलो सामान, दस-पन्द्रह कोस में फैले, अपने डीलरो कों पहुंचवाकर; दस लाख का प्रॉफिट बना लिया। वह भी अधिकांश समय घर पर ही रहते हुये।
इसके लिये पप्पू जी ने तीन क्यूबिक मीटर स्थान, ऐसी जगह मुहैया कराया; जो सुरक्षित भी था। वहां प्रायः हर हफ्ते, एक छोटा-ट्रक; माल उतारने, आया करता था।
भारत में ऐसी जगह का किराया, बहुत से रिटायर्ड लोगों के यहां, औसतन दस-पन्द्रह हजार सालाना मिलता है। बिजली पानी की सुविधा के साथ।
दस-दस किलो के औसतन तीस-चालीस बण्डल की, उठाई-धराई करने वाले मज़दूर भी, सालाना दस-पन्द्रह हजार रुपये कमा ही लेते हैं। आधा-एक घण्टे काम के बदले। शासन द्वारा अनुशंसित, न्यूनतम मज़दूरी की दर से। पार्ट-टाइम काम करके।
लाख रुपये सालाना का काम मांगने, सायकल/मोटर-सायकल/रिक्शा या बैलगाड़ी वाले; आते ही रहते हैं। परमानेण्ट काम के लिये।
स्मार्टफोन और अनलिमिटेड इंटरनेट, पन्द्रह-बीस हजार रुपये सालाना का; आराम से मिलता है। ऑनलाइन बैंकिग, ऑर्डर-बुकिंग व सप्लाई ट्रेकिंग के लिये।
रिश्तों का, जगह का, ओर संसाधनों का; होली, दिवाली मेंटेनेंस; आराम से पचास हजार में होता ही है।
पप्पू जी पहुंचे परेश के लड़के की वर्षगांठ पर।
वो देखते क्या हैं? परेश ने दो ही साल में घर की; दशा ही बदल डाली। चार पहिए की चमचमाती गाड़ी दरवाजे के सामने खड़ी थी।
दो चार नहीं बल्कि पूरी 500 से ज्यादा गाड़ियां; सामने खेतों में खड़ी हुयीं थीं।
गाड़ियां थी राकेश समेत, उन नव युवाओं की; जो अभी 2 साल पहले तक, बेरोजगारी से लड़ते हुए; आत्महत्या के कगार पर, जा कर खड़े हो चुके थे।
परेश के पास पांच सौ, तो बाकी 25 के पास; साड़े बाराह हजार।
और उनकी बीवीयां, मतलब 25000। और उनके घर वाले & मां-बाप; मतलब 50 000। और आगे तो हर साल, इतने वोट बड़ने ही वाले; पप्पू जी के।
इधर इलाके की समृद्धि, देख-सुन कर, बाम्बे-दिल्ली और सऊदी गये लड़के भी; अब एक-एक कर के, गांव वापस लौटना शुरू हो गये। अपने-अपने बूढ़े मां बाप के पास।
यदि आप भी पप्पू जी, जैसे बनना चाहते हैं; तो अपने जिले की एजेंसी लॉक करने हैतु; अपने मोबाइल नम्बर को "1234567890" की जगह लिखकर वर्गीकृत विज्ञापन प्रकाशित करायें अपनी क्षमतनुसार।
इसकी खबर कम्पनी को दें यहां से तुरंत
नहीं तो "पहिले आये-पहिले पाये" के आधार पर; कोई ओर झटक लेगा, आपके इलाके के अधिकार।
प्रखण्ड 6:
पंजियन-पुस्तिकाओं का अधिकतम खुदरा मूल्य ₹20 है।
आपके द्वारा अनुशंसित शिविर समन्वयकों द्वारा; आदेशित वीपीपी मूल्य पर, न्यूनतम चार अंकों में होजाने पर; मासिक आधार पर (मासान्त: 28/29/30/31 तारीख को) "10 प्रतिशत एजेंसी कमीशन" आपको मिलेगा।
आपके द्वारा बिना जीएसटी का झमेला उठाये।
पंजियन पश्चात के अनिवार्य साहित्य के भण्डारण का 4 प्रतिशत + वितरण का 1 प्रतिशत डिस्काउण्ट थौक मूल्य-सूची के आधार पर, आपको मिलेगा।
अपने जिले की एजेंसी लॉक करने हैतु; अपने मोबाइल नम्बर को 1234567890 की जगह लिखकर विज्ञापन प्रकाशित करायें।
इसकी खबर कम्पनी को दें; यहां से, तुरंत।
प्रखण्ड 7:
परेश साल भर में 500 X 10 = 5000 किलो माल बेचकर दसलाख कमाने वाला है।
उसका 4 प्रतिशत एजेंसी कमीशन चालीस हजार; पप्पू जी की कमाई।
परेश पर एजेंसी कमीशन चालीस हजार, तो बाकी 25 के ऊपर; दस लाख। वितरण खर्च के ढाई लाख अलग से।
ऊपर से वर्ष के अन्त में टर्नओवर पर; 1 प्रतिशत पारितोषिक।
इतना सब करने पर; जो बेशकीमती गुडविल बनी, वह तो बड़ती ही जानी है; सालों साल।
इस प्रकार पप्पू जी बन गये; परेश, राकेश, पंचम, दशरथ, वल्लभ और उत्तम जैसे सेंकड़ों नवयुवकों की नज़र में इको-प्रसारक या संक्षेप में इकोरक।
उनकी संस्था ईपापुस्त के प्रवर्तक की दृष्टि में; पप्पू जी हैं एक "प्रतिष्ठित इको-प्रसारक" जिला स्तरीय-वितरक।
मेंरी पेंशन के दस हजार, यदि एक साल बेंक में रखूं; तो साल भर बाद वो हो जायेंगे: दस हजार पांचसौ।
यदि उतने का माल मंगाने में, पप्पू जी तीन दिन लगायें। और तीन दिन उसको बांटने में। तो एक सप्ताह में ही हो गये; दस हजार पांचसौ।
प्रखण्ड 9:
और साल के 52 सप्ताह मे से 40-42 सप्ताह में ही यह हो गया तो? 6-7 गुना एक ही साल में.....!
गुडविल बनने के कारण; अब परेश भी, अग्रिम भुगतान करके रखता था। जिससे उसके ग्राहक; खाली हाथ न लौट जायें।
इस प्रकार पप्पू जी के व्यवसाय का चक्र, सप्ताह में एक की जगह; सप्ताह में दो से लेकर, कभी-कभी तो चार बार का; हो चुका।
प्रखण्ड 10:
इस पूरे लेख में, कुल 7 अण्डरलाईन्ड लिंक हैं। अपने आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिये; धैर्य-पूर्वक सभी का अध्ययन करने के बाद ही, अगला कदम उठायें।
प्रखण्ड 11:
इस पूरे लेख में, 11 प्रखण्डों में 15+12+7+4+6+6+7+2+3+7+3 = कुल 72 पंक्तियां हैं।
समझ न आने पर, प्रखण्ड की लाइन का उल्लेख करने पर; हम अधिक सार्थक सम्वाद कर सकते हैं, कम से कम समय में।
मेल/मैसेज द्वारा कभी भी, के अलावा सीधा संपर्क; सुबह साड़े नौ बजे से सुबह दस बजे के बीच।
पप्पू जी ने पहले साल खूब मेहनत करके अपने जिले के सभी पिन कोड क्षेत्र में एक- एक शिविर समन्वयक स्थापित कर डाला।
जिन्होंने दिन रात एक कर के चार-पांच शिविर आयोजित करवा लिये।
इस प्रकार पप्पू जी ने अपनेेेेे पूरेेेेे जिलेेेेे मे दस हजार बेरोजगारों को रोजगार से लगवा दिया।
परिणाम स्वरूप पप्पू जी की एजेंसी को खरीदने के लिए; कई दावेदार उपस्थित हो गए।
इकोगृह नामक संस्था ने पप्पू जी की एजेंसी को पप्पू जी की शर्तों पर बिकवाने में मदद की।
और इस प्रकार पप्पू जी डेड़ ही साल के अंदर 40 लाख रुपए कमा कर बाजू हो गए।
और लग गए राजनीति में अपना कद बड़ा करने में।